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नाथ साहित्य
‘नाथ’ का शाब्दिक अर्थ ‘स्वामी या संरक्षक’ के रूप में ‘तैतरीय
उपनिषद् या अथर्ववेद’ में मिलता है। नाथो का जन्म ‘सहजवान से हुआ था।
→ इन्हें सिद्धों से अलग-अलग जलंधर नाथ ने किया था। → नाथो के आदिनाथ ‘शिव’ है जबकि नाथो के आदिगुरु ‘गोरख नाथ’ है। ⇒ नाथ मूर्तिपुजा व बहुदेववाद के विरोधी थे। उन्होंने नारी योग साधना का भी विरोध किया और इसी कारण ये सिद्धो से अलग हुए थे। ⇒ नायो ने योग साधना पर बल दिया। आगे चलकर कबीर, योग साधना नायो से ग्रहण की।
→ नाथो ने हठ योग अपनाया, जिसमे “ह’ का अर्थ ‘सूर्य’ अर्थात ‘इंगला नाडी तथा ‘ठ’ का अर्थ ‘चदूंगा’ अर्थात ‘पिंगला नाडी’ लिखा था।
→ नाथो का क्षेत्र ‘पंजाब व राजस्थान था।
→ नाथो की संख्या 9 (नौ) है।
→‘गोरख सिद्धांत संग्रह’ के अनुसार नौ नाथ निम्नलिखित है।
(1) जलंधर नाथ
(2) गोरखनाथ
(3) चर्पटनाथ
(4) जड भरत नाथ
(5) भीमनाथ
(6) मलयार्जुन
(7) हरिश्चंद्र
(8) सत्यनाथ
(9) नागार्जुन
⇒ नाथो ने पंच मकारों का विरोध किया था जबकि सिद्धो ने पंचमकारो का पंस लिया था।
पंच मकार – (माँस, मदिरा, मैथुन, मुद्रा, मत्सय) अष्टछाप के कवि
⇒ नाथो की भाषा अपभ्रश (भपचंरा मिश्रित राजस्थानी ) भी । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल में इनकी भाषा को सघुक्कडी भाषा कहा।
→ आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाथो को अवधूत (सन्यासी) कहा।
⇒ नाथ कानों में बड़े-बड़े स्वीक पत्थर पहनते थे । जिससे उनके कान फट जाते थे और ये • कनफटा योगी’ कहलाए।
नाथ साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
नाथ साहित्य : महत्वपूर्ण तथ्य ⇒ नाथ पंथ सिद्धों की भोगवादी वाममार्गी साधना की प्रतिक्रिया में आया था।
गोरखनाथ ने हठयोग’ नाम से षटचक्रों बाला योगमार्गप्रवर्तित किया। ‘ह’ का अर्थ-सूर्य व ‘ठ’ का अर्थ-चंद्रमा है।
मत्येन्द्रनाथ या मछन्चर के शिष्य गोरखनाथ ने नाथपंथ व नाथ साहित्य का प्रवर्तन किया।
आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “नाथपंथ या नाथ संप्रदाय के सिद्ध-मत, सिदूद्ध मार्ग, योग मार्ग, योग संप्रदाय, अवधूत-मत एवं अवधूत संप्रदाय नाम भी प्रसिद्ध है।
“नाथ पंथ के योगियों को ‘कनफटा’ भी कहा जाता है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ।…… भक्ति आंदोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आंदोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग ही था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे।”
डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की 14 रचनाओं को प्रमाणिक मानकर इनका संपादन ‘गोरखवाणी’ नाम से किया है।
ये 14 रचनाएँ हैं– 1. शब्द 2. पद 3. शिष्या दर्शन 4. प्राण सांकली 5. नरवैबोध 6. आत्मबोध 7. अभयमात्रा योग 8. पंद्रहतिथि 9. सप्तवार 10. महिन्द्र गोरखबोध 11. रोमावली 12. ज्ञान तिलक 13. ज्ञान चौतीस 14. पंचमात्र।
‘गोरक्ष सिद्धांत संग्रह’ में प्रसिद्ध नौ नाथों के नाम इस प्रकार दिए हैं- 1. नागार्जुन 2. जड़भगत 3. हरिश्चंद्र 4. सत्यनाथ 5. भीमनाथ 6. गोरक्षनाथ 7. चर्पटनाथ 8. जलंधर 9. मलियार्जुन
→ नागार्जुन, गोरखनाथ, चर्पट और जलन्धरनाथ का नामनवनाथ व चौरासी सिद्धों दोनों में मिलता है।
→ मित्रबंधु गोरखनाथ को हिंदी का प्रथम गढ्य लेखक मानते हैं। अष्टछाप के कवि
→ गोरखनाथ में गुरूमहिमा, प्राण-साधना, साधनात्मक रहस्यवाद, मनः साधना, कुण्डलिनी जागरण, शून्य- समाथि, इंद्रियनिग्रह, निवृत्तिमार्ग और चारित्रिक दृढ़ता आदि भाव मिलते हैं।नाथों में नागार्जुन को ‘रसायनी’ माना जाता है।
→ नाथों की भाषा सधुक्कड़ी थी जो खड़ी बोली मिश्रित राजस्थानी है।→ नाथपंथ को सिद्धों व संतों के मध्य की कड़ी कहा जा सकता है।
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नाथ साहित्य के प्रमुख कवि
(1) मछिन्दर /मत्स्येन्द्र नाथ :- इनका मूलनान विष्णु शर्मा था। इनका गुप्त नाम भैरवानंद था।
ये तंत्र-मंत्र साधना में निपुण थे। अष्टछाप के कवि
जब शिवजी योग साधना की शिसा पार्वती को सुना रहे थे तो ये गुप्त रूप से। मछली के उपर में जाकर उसे चुन लेते है। जब वापस भाते समय शिवनी की नजर उन पर पड़ जाती है और के इन्हे शाप देते हैं। जिसके कारण ये नारी योग सापना में लिप्त हो आते है और इसका उद्वार गोरखनाथ सिंहल दीप’ में करते है। अब ये पद्मावती पर आसक्त होते है।
प्रमुख रचना – कुलानंद, ज्ञानकारिका, कोलज्ञान निर्णय ।
→ उनके गुरु और गुरुभाई ‘जलंधर ‘नाथ’ थे।(
(2) गोरखनाथ – इनका मूल नाम गूग/गुग्ग था।
गुरु – मछिंदर नाथ
⇒ इन्होंने ‘नाद बिंदू’ दूद्वारा भाचार – युद्धछि आंदोलन चलाया था।
→ इन्होने लेखन की चार शैलीयाँ अपनाई (1) प्रश्नोत्तरी शैली(2) उलटवामी शैली (भागे चलकर कबीर ने इसे अपनाया) (3) आंतकारिक शैली (4) गेय शैली
⇒ गोरख ने अधिकतर ग्रंथ ‘संवाद शैली’ में लिये थे।
⇒ मिश्रबधुंओ ने इन्हें ‘हिंदी गद्य का प्रथम लेखक माना अष्टछाप के कवि
⇒ शुक्ल ने उनकी 10 रचनाएं मानी जबकि पीतांबररत बडध्वाल ने इनकी 4० रचनाएं मानी।
⇒ गोरखनाथ ने ‘षडंग योग’ पर बल दिया- आपन, ध्यान, धारणा, प्राणायाम, प्रत्याहार, समाधि । इनकी प्रमुख रचनाएं जिस है- नरवैबोध, काफिर बोध, गोरख बोध, गोरखसार /सागर
→ डाॅ. पीतांबर दत्त बडघ्लवाल ने इनकी वाणियो का संकलन 1930 में में ‘गोरखबाती/गोरखबानी संग्रह’ नाम से हिन्दी में किया।
नाथ साहित्य की विशेषता
नाथ साहित्य : महत्वपूर्ण तथ्य ⇒ नाथ पंथ सिद्धों की भोगवादी वाममार्गी साधना की प्रतिक्रिया में आया था।
गोरखनाथ ने हठयोग’ नाम से षटचक्रों बाला योगमार्गप्रवर्तित किया। ‘ह’ का अर्थ-सूर्य व ‘ठ’ का अर्थ-चंद्रमा है।
मत्येन्द्रनाथ या मछन्चर के शिष्य गोरखनाथ ने नाथपंथ व नाथ साहित्य का प्रवर्तन किया।
आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “नाथपंथ या नाथ संप्रदाय के सिद्ध-मत, सिदूद्ध मार्ग, योग मार्ग, योग संप्रदाय, अवधूत-मत एवं अवधूत संप्रदाय नाम भी प्रसिद्ध है।
“नाथ पंथ के योगियों को ‘कनफटा’ भी कहा जाता है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ।…… भक्ति आंदोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आंदोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग ही था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे।”
डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की 14 रचनाओं को प्रमाणिक मानकर इनका संपादन ‘गोरखवाणी’ नाम से किया है।
ये 14 रचनाएँ हैं- 1. शब्द 2. पद 3. शिष्या दर्शन 4. प्राण सांकली 5. नरवैबोध 6. आत्मबोध 7. अभयमात्रा योग 8. पंद्रहतिथि 9. सप्तवार 10. महिन्द्र गोरखबोध 11. रोमावली 12. ज्ञान तिलक 13. ज्ञान चौतीस 14. पंचमात्र।
‘गोरक्ष सिद्धांत संग्रह’ में प्रसिद्ध नौ नाथों के नाम इस प्रकार दिए हैं- 1. नागार्जुन 2. जड़भगत 3. हरिश्चंद्र 4. सत्यनाथ 5. भीमनाथ 6. गोरक्षनाथ 7. चर्पटनाथ 8. जलंधर 9. मलियार्जुन
→ नागार्जुन, गोरखनाथ, चर्पट और जलन्धरनाथ का नामनवनाथ व चौरासी सिद्धों दोनों में मिलता है।
→ मित्रबंधु गोरखनाथ को हिंदी का प्रथम गढ्य लेखक मानते हैं।
→ गोरखनाथ में गुरूमहिमा, प्राण-साधना, साधनात्मक रहस्यवाद, मनः साधना, कुण्डलिनी जागरण, शून्य- समाथि, इंद्रियनिग्रह, निवृत्तिमार्ग और चारित्रिक दृढ़ता आदि भाव मिलते हैं।नाथों में नागार्जुन को ‘रसायनी’ माना जाता है।
→ नाबों की भाषा सधुक्कड़ी थी जो खड़ी बोली मिश्रित राजस्थानी है।→ नाथपंथ को सिद्धों व संतों के मध्य की कड़ी कहा जा सकता है।
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