आदिकाल
“आदिकाल” एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है “प्रारंभिक काल” या “आदिम काल”। यह एक सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य में प्रयुक्त होता है और विभिन्न धार्मिक और दर्शनिक विचारधाराओं में उपयोग होता है।
इस शब्द का अर्थ उस काल को सूचित करता है जो मानव इतिहास की शुरुआत में हुआ था, जब समाज और मानवता का विकास अभी प्रारंभिक अवस्था में था। इसका मतलब होता है कि आदिकाल में मानव जीवन की शुरुआत हुई थी और समाज की आदि अवस्था थी।
विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में आदिकाल के विभिन्न व्याख्यान और सिद्धांत हो सकते हैं, जो विशिष्ट धार्मिक सम्प्रदायों के अनुसार भिन्न होते हैं। यह एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण शब्द है जो मानव सभ्यता के आरंभिक दौर की बात करता है।
Table of Contents
आदिकाल का इतिहास
आदिकाल” का इतिहास मानव सभ्यता के आरंभिक दौर को संकेत करता है, लेकिन यह किसी निश्चित आवश्यकता के अनुसार बदल सकता है क्योंकि यह विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के आधार पर मिलाने की जाती है। मानव इतिहास के आदिकाल के बारे में विभिन्न विचार निम्नलिखित हो सकते हैं:
- प्रागैतिहासिक युग: यह उस समय की बात करता है जब लिखित रिकॉर्ड्स नहीं थे और मानव समुदायें ज्यादातर जैविक उपकरणों का प्रयोग करती थीं। यह युग उस समय से लेकर उस समय तक का समय हो सकता है जब लिखित रिकॉर्ड्स का आरम्भ हुआ।
- वेदिक काल: इसका संबंध वेदों से होता है, जो प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्र में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। यह काल लगभग 1500 ई.पू. से 500 ई.पू. तक का हो सकता है और वेदों के अवधारणाओं, धर्मिक प्रथाओं और जीवनशैली की बात करता है।
- प्राचीन सभ्यताएँ: इसमें मेसोपोटेमिया, इंडस घाटी, मिस्र, शुमेर आदि प्राचीन सभ्यताओं का समय शामिल हो सकता है। इन सभ्यताओं में सिटी स्टेट्स, लिखित भाषाएँ, सामाजिक संरचना, विज्ञान, कला आदि के प्रतिष्ठान हो सकते हैं।
- प्राचीन ग्रीक और रोमन सभ्यता: यह सभ्यता यूरोप में विकसित हुई थी और ग्रीक दर्शन, विज्ञान, कला, राजनीति, और फिलॉसोफी की उत्कृष्टता के लिए जानी जाती है।
आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
मानव सभ्यता के आदिकाल में कई प्रमुख प्रवृत्तियाँ थीं जो समाज, आर्थिक गतिविधियाँ, और संजीवनी रही हैं। निम्नलिखित कुछ प्रमुख प्रवृत्तियाँ आदिकाल में दिखाई देती हैं:
- संग्रहण और शिकार: आदिकाल में मानव समुदायें आहार की प्राप्ति के लिए संग्रहण और शिकार का प्रयोग करती थीं। यह सब उनके खाद्यों की आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण था।
- जल और खाद्य की तलाश: पानी की खोज में और वनस्पतियों और जानवरों के खाद्य स्रोतों की तलाश में लोग आवश्यकता के अनुसार चल पड़ते थे।
- आवास निर्माण: लोग प्राचीनकाल में आवास बनाने का प्रयास करते थे, जो उन्हें मौसम की बुराईयों से बचाते और सुरक्षा प्रदान करते।
- वस्त्र निर्माण: आदिकाल में लोग अपने शरीर को धकने के लिए प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सामग्री से वस्त्र बनाते थे।
- समुदायिक जीवन: समूह और समुदाय के सदस्यों के बीच साझा संवाद, जूथ, और सहायता आदिकाल में महत्वपूर्ण थे।
- धार्मिक अनुष्ठान: आदिकाल में धार्मिक अनुष्ठान भी महत्वपूर्ण था, और यह धार्मिक प्रथाओं, पूजा-अर्चना, और यज्ञ आदि को संकेत करता था।
- संगीत और कला: आदिकाल में मानव समुदायें संगीत, नृत्य, और कला के रूपों में भी आत्म-प्रकट करती थीं।
- भाषा और संवाद: मानव आदिकाल में भाषा का प्रयोग संवाद के रूप में होता था, जिससे वे आपसी बातचीत कर सकते थे।
- शिकार और आहार की प्रवृत्ति: आदिकाल में मानव समुदायें अपने आहार की प्राप्ति के लिए शिकार की प्रवृत्ति में थीं। शिकार से आपूर्ति के साथ-साथ उन्हें प्राणियों के अनुकूल गुण और प्रतिरक्षा में सुधारने की सीख मिलती थी।
- समुदायिक जीवन और सहायता: आदिकाल में समुदाय का अद्वितीय महत्व था। लोग एक-दूसरे के साथ सहयोग करते और समुदाय के हित में काम करते थे, जैसे कि संगठित शिकार, वनस्पतियों की खोज, और जल स्रोतों के प्रबंधन में।
- धार्मिक अनुष्ठान और संवाद: आदिकाल में धार्मिक अनुष्ठान एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति थी, जो समाज को संबल देती थी। लोग धार्मिक क्रियाओं, पूजा, यज्ञ आदि में जुटते थे और इसके साथ ही उनके बीच धार्मिक विचार-विमर्श भी होता था, जो समुदाय को एकजुट करता था।
- जल और खाद्य की तलाश और प्रबंधन: आदिकाल में पानी और खाद्य की प्राप्ति के लिए संवाद के रूप में भाषा का प्रयोग होता था। लोग वनस्पतियों, जानवरों और पानी के स्रोतों की तलाश में चल पड़ते थे और इनके प्रबंधन के तरीकों को सीखते थे।
- संगीत, नृत्य और कला: आदिकाल में संगीत, नृत्य, और कला भी मानव समुदायों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। इसके माध्यम से लोग अपने भावनाओं को व्यक्त करते और समुदाय के साथ आपसी जुड़ाव बनाते थे
ये जोड़े आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों के बीच संबंध को प्रकट करते हैं और इसके माध्यम से हमें आदिकाल के समाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहलु की समझ मिलती है।
आदिकाल का नामकरण
“आदिकाल” शब्द संस्कृत में आता है और इसका अर्थ होता है “प्रारंभिक काल” या “आदिम काल”। यह एक संस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य में प्रयुक्त होने वाला शब्द है जो मानव सभ्यता के आरंभिक दौर को सूचित करता है।
“आदि” का अर्थ होता है “प्रारंभ” और “काल” का अर्थ होता है “समय”। इस शब्द के माध्यम से व्यक्त होता है कि आदिकाल में मानव जीवन की शुरुआत हुई थी और समाज की आदि अवस्था थी। यह शब्द मानव सभ्यता के प्रारंभिक दौर के रूप, धार्मिक आदर्श और ऐतिहासिक महत्व को सूचित करने में प्रयुक्त होता है।
“आदिकाल” का शब्द नामकरण उस समय की बात करता है जब मानव सभ्यता की शुरुआत हुई थी और जब समाज, संगठन, धर्म, विज्ञान, कला आदि के पहलुओं की नींवें रखी गई थीं। निम्नलिखित अन्य प्रमुख प्रवृत्तियाँ आदिकाल के साथ जुड़ी हो सकती हैं:
- प्रागैतिहासिक युग के अवशेष: आदिकाल से प्रागैतिहासिक युग के अवशेष भी जुड़े हो सकते हैं। यह युग समाज के विकास, उपकरणों का प्रयोग, और शैली में परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण चरण रहा हो सकता है।
- आवश्यकताओं का उत्थान: आदिकाल में मानवों को आवश्यकताओं के अनुसार जीवन का सामग्री उत्थान करने की कला सीखनी पड़ती थी। वे जल, खाद्य, आवास, और उपकरणों की प्राप्ति के तरीकों को सीखते थे।
- धार्मिक अनुष्ठान की आरंभिक प्रवृत्ति: आदिकाल में धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत हुई थी, जिसमें पूजा, यज्ञ, और धार्मिक क्रियाएँ शामिल थीं। इससे लोग अपने समुदाय और देवताओं के साथ आपसी संबंध बनाते थे।
- सामाजिक संरचना का विकास: आदिकाल में सामाजिक संरचना का विकास हुआ, जिसमें व्यक्तिगत भूमिकाएँ, पारिवारिक संबंध, और समुदाय के बंधन बने।
- भाषा का उपयोग: भाषा का उपयोग संवाद के रूप में होने लगा, जिससे लोग अपने विचारों और अनुभवों को दूसरों के साथ साझा कर सकते थे।
- संगीत, नृत्य, और कला की उत्कृष्टता: संगीत, नृत्य, और कला की उत्कृष्टता आदिकाल में दिखाई देने लगी और इससे समाज की रचनात्मकता का परिचय हुआ।
ये जोड़े आपको आदिकाल के नामकरण के साथ-साथ उसके विभिन्न पहलुओं की समझ में मदद कर सकते हैं।
हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल
हिन्दी साहित्य का इतिहास बहुत ही पुराना है और यह आदिकाल से ही शुरू होता है। यहाँ पर हिन्दी साहित्य के आदिकाल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है:
- वेदिक साहित्य: हिन्दी साहित्य के आदिकाल में वेदों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। वेदों के सूक्तों और भाष्यों में संगीत, धर्म, और जीवन की महत्वपूर्ण बातें उल्लेखित होती हैं।
- भागवत गीता: भागवत गीता, महाभारत के भीष्म पर्व में मिलने वाला एक अद्वितीय धार्मिक ग्रंथ है जिसमें अर्जुन और कृष्ण के बीच हुए संवाद के माध्यम से जीवन, कर्म, और धर्म के विषय में उपदेश दिया गया है।
- पाणिनि की अष्टाध्यायी: पाणिनि की अष्टाध्यायी, संस्कृत व्याकरण का महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो हिन्दी साहित्य के आदिकाल में व्याकरण की महत्वपूर्ण बुनाई को दर्शाता है।
- पाल ग्रंथों का समय: हिन्दी साहित्य के आदिकाल में पाल राजवंश के शासकों ने कई ग्रंथ लिखे जो धार्मिक, कला, और साहित्यिक विषयों पर हैं।
- नामदेव और सूरदास: नामदेव और सूरदास जैसे भक्ति काल के संतों ने हिन्दी में भक्ति और ध्यान के विषयों पर अपने दोहे, पद आदि की रचनाएँ की।
- अवधी और ब्रज भाषा: आदिकाल में हिन्दी साहित्य में अवधी और ब्रज भाषा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। संत कवियों ने इन भाषाओं में रचित ग्रंथों के माध्यम से धार्मिक और सामाजिक संदेश प्रस्तुत किए।
आदिकाल में हिन्दी साहित्य विभिन्न धार्मिक और सामाजिक विचारधाराओं को समाहित करते हुए विकसित हुआ था और इसने मानवता के मूल्यों, आदर्शों, और विचारों को साझा किया।
आदिकाल के प्रमुख भाग
आदिकाल की कुल छः भागों मे विभाजित है
- नाथ साहित्य
- सिद्ध साहित्य
- जैन साहित्य
- रासो साहित्य
- लौकिक साहित्य
- प्रारम्भिक गद्य साहित्य
आदिकाल की विशेषताएं
आदिकाल विशेषताओं से भरपूर होती है, क्योंकि यह मानव सभ्यता के आरंभिक दौर को सूचित करता है और उस समय की महत्वपूर्ण प्रकृतियों और प्रवृत्तियों को प्रकट करता है। निम्नलिखित हैं आदिकाल की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं:
- आदिकाल की अवस्था: आदिकाल मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक दौर को सूचित करता है। यह एक ऐसा समय होता है जब मानव समुदाय ने सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रवृत्तियों की नींवें रखी और समाज के बुनाई के माध्यम से विकसित हुआ।
- आदिकाल की विविधता: आदिकाल में मानव समुदायों की जीवनशैली, भाषा, कला, संगीत, धर्म, और सांस्कृतिक परंपराएँ विशेषता से भरी होती हैं। यह विविधता समाज के विकास की प्रारंभिक चरणों को दर्शाती है।
- आदिकाल की भाषाएँ: आदिकाल में विभिन्न भाषाएँ जैसे कि अवधी, ब्रज, पाली, प्राकृत, आदि उपयोग में आती थीं। इन भाषाओं के माध्यम से मानव समुदाय अपने विचारों और अनुभवों को अभिव्यक्त करते थे।
- धार्मिक प्रथाएँ: आदिकाल में धार्मिक प्रथाएँ महत्वपूर्ण थीं। वेदों, उपनिषदों, भगवद गीता, और अन्य धार्मिक ग्रंथों में जीवन के मूल्यों, नैतिकता, और आध्यात्मिकता के विषय में उपदेश दिया गया था।
- सहायता और समुदायिकता: आदिकाल में समुदाय की सहायता और सहयोग का महत्वपूर्ण स्थान था। लोग एक-दूसरे की मदद करते थे और समुदाय के हित में काम करते थे।
- आवश्यकताओं का प्रबंधन: आदिकाल में लोगों को अपनी आवश्यकताओं का प्रबंधन करने की आवश्यकता थी। वे खाद्य, पानी, आवास, और उपकरणों की प्राप्ति के तरीकों को सीखते थे।
- कला और संगीत: आदिकाल में कला, संगीत, और नृत्य का महत्वपूर्ण स्थान था। यह लोगों की भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम था।
- विशिष्ट सामाजिक संरचना: आदिकाल में सामाजिक संरचना का विकास हुआ था, जिसमें व्यक्तिगत भूमिकाएँ, परिवारिक संबंध, और समुदाय के बंधन थे।
आदिकाल के कवि
आदिकाल में कई महत्वपूर्ण कवि रहे हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से उस समय की जीवनशैली, भाषा, संस्कृति और समाज को दर्शाया। यहाँ कुछ प्रमुख आदिकाल के कवियों के नाम दिए गए हैं:
- रविदास: रविदास भक्ति काल के महान संत और कवि थे। उनकी रचनाएँ आदिकाल में लिखी गई थीं और वे भगवान की भक्ति और एकता के मुद्दों पर आधारित थीं।
- सूरदास: सूरदास भी भक्ति काल के प्रमुख कवि रहे हैं और उनकी रचनाएँ आदिकाल में लिखी गई थीं। उन्होंने ‘सूर सागर’ नामक ग्रंथ में भगवान के भक्ति और प्रेम के विषय में लिखा।
- तुलसीदास: तुलसीदास आदिकाल के बाद मध्यकाल के कवि हैं, लेकिन उनकी रचनाएँ भक्ति काल की परंपरा को अनुसरण करती हैं। उनका महत्वपूर्ण काव्य ‘रामचरितमानस’ आदिकाल और मध्यकाल की संस्कृति, धर्म और जीवनशैली को दर्शाता है।
- चांद बरदाई: चांद बरदाई भी आदिकाल के महत्वपूर्ण कवि में से एक हैं। उनकी रचनाएँ ब्रज भाषा में थीं और उन्होंने प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन की अनगिनत पहलुओं को दर्शाया।
आदिकाल में कई कवियों ने अपनी रचनाएँ लिखी थी, लेकिन सभी के नाम का पूरी तरह से सूचीबद्ध नहीं है क्योंकि उनकी रचनाएँ भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखी गई थीं और कुछ नाम समय के साथ लुप्त हो गए हो सकते हैं। फिर भी, निम्नलिखित कुछ प्रमुख कवियों के नाम दिए जा सकते हैं जो आदिकाल में अपनी महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखे:
- रविदास
- सूरदास
- मीराबाई
- कबीर
- तुलसीदास
- संत नामदेव
- संत तुकाराम
- संत चौरासी
- संत ज्ञानेश्वर
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आदिकाल का काल विभाजन
आदिकाल का काल विभाजन मुख्य रूप से भाषा के आधार पर किया जा सकता है, जिसमें विभिन्न भाषाओं और काव्यशैलियों की पहचान की जाती है। आदिकाल के काल विभाजन का ब्रह्मणिक और भक्तिकाल में दो भागों में होता है।
- ब्रह्मणिक युग (800 ईसा पूर्व – 400 ईसा पूर्व): इस काल में वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मणों, आरण्यकों, और उपदेशों की रचनाएँ होती थीं। यह ग्रंथ विधिवादी ज्ञान की परंपरा को प्रतिनिधित्व करते हैं और वेदिक संस्कृति की महत्वपूर्ण पहचान होती है।
- भक्तिकाल (400 ईसा पूर्व – 1200 ईसा पूर्व): भक्तिकाल में भगवान की भक्ति और आध्यात्मिकता को प्रमुख दिया जाता है। इस काल में भक्ति संदेश के माध्यम से धार्मिक और सामाजिक सुधार के प्रति जागरूकता पैदा की गई। संत कवियों ने अपनी भाषा में अपने आदर्शों को प्रस्तुत किया और लोगों की आध्यात्मिक दिशा को मार्गदर्शन किया।
इन दो युगों के अलावा भाषा के आधार पर भी आदिकाल को विभाजित किया जा सकता है, जैसे कि ब्रज भाषा, अवधी भाषा, पाली भाषा, प्राकृत भाषा, आदि। यह विभाजन भाषाओं की विशेषताओं और समृद्धि को प्रकट करता है जो आदिकाल में विकसित हुई थीं।
आदिकाल के प्रथम कवि
आदिकाल में कई प्रथम कवियों ने अपनी रचनाएँ दी थी, लेकिन यह कठिन है कि आदिकाल के प्रथम कवि कौन थे, क्योंकि उनकी रचनाएँ अक्षरशः नहीं प्रसरित हुई हैं और समय के साथ उनके नाम और काव्य लुप्त हो सकते हैं।
हालांकि, रविदास, सूरदास, मीराबाई, कबीर, संत नामदेव आदि उन प्रमुख कवियों में से हैं जिन्होंने आदिकाल में अपनी रचनाएँ लिखी थीं और उनका महत्वपूर्ण योगदान साहित्य और धर्म के क्षेत्र में था। ये कवि भक्ति और आध्यात्मिकता के प्रति अपने विशेष दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध थे और उनकी रचनाएँ आदिकाल की सांस्कृतिक और साहित्यिक धारा को प्रकट करती हैं।
इन कवियों की रचनाएँ भक्ति, प्रेम, मानवता, और आध्यात्मिकता के मुद्दों पर आधारित थीं और उनके काव्यों का प्रभाव आज भी हमारे समाज में महसूस होता है।
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आदिकाल की प्रवृत्तियां
आदिकाल के दौरान विभिन्न प्रवृत्तियाँ थीं जो मानव समुदाय के जीवन और संस्कृति को प्रभावित करती थीं। यहाँ कुछ प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं जो आदिकाल में दिखाई देती थीं:
- भक्ति और आध्यात्मिकता: आदिकाल में भक्ति और आध्यात्मिकता की महत्वपूर्ण प्रवृत्ति थी। संत-कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भगवान के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को व्यक्त किया। इससे लोगों की आध्यात्मिकता बढ़ी और धार्मिकता में सुधार हुआ।
- भाषा का विकास: आदिकाल में भाषा का विकास एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति थी। भक्ति और साहित्य की रचनाओं के माध्यम से विभिन्न भाषाओं में लोग अपने भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करने लगे।
- सामाजिक सुधार: आदिकाल में समाज में सुधार की प्रवृत्ति थी। संत-कवियों ने जातिवाद, जाति-प्रथा, और सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज उठाई और उन्होंने समाज में न्याय और समानता की बढ़ती समर्थन किया।
- साहित्यिक रचनाएँ: आदिकाल में साहित्यिक रचनाओं की प्रवृत्ति भी थी। भक्ति और आध्यात्मिकता के विषयों पर रचनाएँ लिखी गईं, जिनमें धार्मिक और दार्शनिक विचार व्यक्त हुए।
- विशेष समुदायों की भाषा: आदिकाल में विभिन्न समुदायों ने अपनी भाषाओं में रचनाएँ लिखी। इनमें अवधी, ब्रज, पाली, प्राकृत आदि भाषाएँ शामिल थीं।
- लोकगीत और कविताएँ: आदिकाल में लोकगीत और कविताएँ भी एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति थीं। ये लोकप्रिय रचनाएँ लोगों की जीवनशैली, रूढ़िवादी संस्कृति और सामाजिक मुद्दों को दर्शाती थीं।
आदिकाल की ये प्रवृत्तियाँ समाज, साहित्य और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और उस समय की मानव समुदाय की दृष्टि को साक्षात्करती हैं।
आदिकाल की प्रमुख रचनाएँ
आदिकाल में कई प्रमुख रचनाएँ लिखी गई हैं जो भक्ति, आध्यात्मिकता और सामाजिक संदेश को प्रस्तुत करती हैं। निम्नलिखित कुछ प्रमुख आदिकाल की रचनाएँ हैं:
- सूर सागर (सूरदास): सूरदास द्वारा रचित “सूर सागर” नामक काव्य में भगवान के प्रति उनकी भक्ति और प्रेम का वर्णन किया गया है।
- दोहावली (तुलसीदास): आदिकाल के महान कवि तुलसीदास ने अपनी “दोहावली” में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को सांगा।
- बिजकी (मीराबाई): मीराबाई की रचनाएँ उनके भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति की उदाहरण हैं।
- दोहे (कबीर): संत कबीर के दोहों में जीवन के मूल्यों, समाजिक बदलाव, और आध्यात्मिक संदेशों को व्यक्त किया गया है।
- गुरुग्रंथ साहिब (सिख गुरुओं के संग्रह): सिख धर्म के गुरुग्रंथ साहिब में आदिकाल के संतों की रचनाएँ भी शामिल हैं, जैसे कि संत कबीर, संत नामदेव, आदि की।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं, आदिकाल में अन्य कई कवियों द्वारा भी महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखी गई थीं।
FAQ
आदिकाल के प्रवर्तक कौन हैं?
वीरगाथा काल आचार्य रामचंद्र शुक्ल
सिद्ध सामंत काल पंडित राहुल सांकृत्यायन
वीर काल आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
आदिकाल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
आदिकाल की भाषा कौन सी है?
आदिकाल की प्रमुख भाषाएँ अवधी, ब्रज और पाली थीं, जिनमें संत-कवियों ने रचनाएँ लिखी।
आदिकाल की काव्य धारा कौन कौन सी है?
आदिकाल में भक्तिकाव्य, वैराग्यकाव्य, मनोरंजनकाव्य, विवादकाव्य, नैतिककाव्य, और लोकगीत आये।