आधुनिक काल
हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल उस समय को दर्शाता है जब भारत में समाज, राजनीति, आर्थिक परिप्रेक्ष्य, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। यह काल आमतौर पर 19वीं सदी के आखिरी दशक से लेकर आज के दिन तक का समय स्पन्दित करता है। आइए, इस काल की मुख्य भूमिका के बारे में विस्तार से जानते हैं:
- समाजिक परिवर्तन: 19वीं सदी के आखिरी दशक में भारतीय समाज में बहुत सारे सामाजिक परिवर्तन हुए। सती प्रथा का उद्धारण, बाल विवाह, जाति भेद आदि कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे थे जिन पर समाज में आवश्यक परिवर्तन की आवश्यकता महसूस हुई।
- ब्रिटिश शासन का प्रभाव: ब्रिटिश शासन के आगमन के साथ, भारतीय समाज में भी परिवर्तन आया। ब्रिटिश राज के दौरान शिक्षा, पत्रिकाओं की स्थापना, और नई विचारधाराओं की प्रेरणा हुई।
- लैंग्वेज और साहित्यिक परिवर्तन: हिन्दी भाषा में भी परिवर्तन हुआ, और आधुनिक साहित्य का संस्करण पैदा हुआ। इस काल में भाषा को सामान्य जनता के समझाने की दिशा में बदलाव हुआ और साहित्य में नए विचार प्रकट हुए।
- राष्ट्रीय चेतना: आधुनिक काल में राष्ट्रीय चेतना बढ़ी। स्वतंत्रता संग्राम के समय भाषा का उद्धारण, राष्ट्रीय भावना, और स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता का संदेश साहित्य में मिलता है।
- साहित्यिक आविर्भाव: आधुनिक काल में हिन्दी साहित्य में नई प्रायोगिकता देखी गई, जिसमें सामाजिक मुद्दे, व्यक्तिगत अनुभव, और समकालीन जीवन की चुनौतियाँ प्रमुख थीं।
- नए प्रवृत्तियाँ और शैलियाँ: आधुनिक काल में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, आदि में नए प्रवृत्तियाँ और शैलियाँ प्रकट हुईं। इस काल में साहित्यिक काम विविध और आधुनिक विषयों पर आधारित होने लगे।
इन सभी परिवर्तनों और प्रवृत्तियों के साथ, हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल एक महत्वपूर्ण युग है जिसने समाज, संस्कृति, और भाषा की विविधता को नए रूपों में प्रस्तुत किया है।
Table of Contents
आधुनिक काल कब से कब तक है
आधुनिक काल का समयवार्तन सामान्यत: 18वीं सदी के आखिरी दशक से लेकर वर्तमान तक का होता है। यानी, आधुनिक काल के आदिकाल आमतौर पर 18वीं सदी के आखिरी दशक से 19वीं सदी के पहले दशक तक के बीच माने जा सकते हैं।
आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ
- रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1941): रवींद्रनाथ ठाकुर भारतीय साहित्य के प्रमुख कवि, लेखक, और विचारक थे। उन्हें ‘गुरुदेव’ के नाम से भी जाना जाता है। उनकी नोबल पुरस्कार से सम्मानित रचनाओं में ‘गीतांजलि’, ‘गोरा’, ‘चोक्क’, ‘बलका’, आदि शामिल हैं।
- सुमित्रानंदन पंत (1900-1977): सुमित्रानंदन पंत ने हिंदी कविता को नए दिशानिर्देश दिए और चायवाद युग के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं ‘कल्पना’, ‘युगवीर’, ‘आँधी-आवे’, ‘चिदंबर’, आदि।
- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (1896-1961): ‘निराला’ के नाम से प्रसिद्ध सूर्यकांत त्रिपाठी आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि में से एक हैं। उनकी रचनाओं में ‘आत्मा कवि’, ‘रामकवि’, ‘अनाथ का शिल्पी’, ‘रोमांटिक व्यक्ति का स्मरण’, आदि शामिल हैं।
- महादेवी वर्मा (1907-1987): महादेवी वर्मा एक प्रमुख महिला कवियों में से एक थीं, जिन्होंने औद्योगिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी रचनाओं के माध्यम से विचार किए। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं ‘यह मेरा देश है’, ‘निम्नलिखित नदियाँ’, ‘मधुबाला’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, आदि।
- जैनेन्द्र कुमार (1905-1946): जैनेन्द्र कुमार आधुनिक हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि थे जिन्होंने विशेष रूप से गीत-गोविंद के संदर्भ में अपनी कविताएँ लिखीं।
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (1908-1974): दिनकर ने स्वतंत्रता संग्राम के समय में अपनी कविताओं के माध्यम से जनमानस को प्रेरित किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं ‘रणक्षेत्र’, ‘पारिजात’, ‘उर्वशी’, आदि।
- मक्खनलाल चतुर्वेदी (1889-1968): मक्खनलाल चतुर्वेदी ने अपनी कविताओं के माध्यम से प्रेम, भारतीय संस्कृति, और स्वतंत्रता के विषय में व्यक्ति किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘जो शीश उठा कर जागा’, ‘आकाशदीप’, ‘यमुना नदी’, आदि।
- यहाँ 20 आधुनिक काल के महत्वपूर्ण हिंदी कवियों के नाम दिए जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं से साहित्य को ऊँचाइयों तक पहुँचाया:
- गोस्वामी तुलसीदास (1532-1623)
- सूरदास (1478-1583)
- मीराबाई (1498-1547)
- जयशंकर प्रसाद (1889-1937)
- सुमित्रानंदन पंत (1900-1977)
- मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964)
- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (1896-1961)
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (1908-1974)
- मक्खनलाल चतुर्वेदी (1889-1968)
- महादेवी वर्मा (1907-1987)
- जैनेन्द्र कुमार (1905-1946)
- हरिवंश राय बच्चन (1907-2003)
- रामविलास शर्मा ‘रघुपति सहाय’ (1924-1993)
- केदारनाथ आग्रवाल ‘नगर’ (1911-2001)
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल (1884-1941)
- विश्वनाथ प्रसाद सिंह (1908-2000)
- भगवतीचरण वर्मा (1923-1981)
- गोपाल दास ‘नीरज’ (1925-2018)
- धर्मवीर भारती (1926-1997)
- आत्मराम शर्मा ‘हरिषंकर परसाई’ (1922-1995)
- ये केवल कुछ हैं, और आधुनिक काल में भारतीय साहित्य के अनेक और कवि हैं जिन्होंने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं से साहित्य को यथार्थ में आधुनिक दिशाओं में ले जाया है।
- यहाँ 20 आधुनिक काल के महत्वपूर्ण हिंदी कवियों के नाम और उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं की एक संक्षिप्त सूची दी गई है:
- रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1941):
- ‘गीतांजलि’
- ‘गोरा’
- ‘चोक्क’
- ‘साधना’
- सुमित्रानंदन पंत (1900-1977):
- ‘कल्पना’
- ‘युगवीर’
- ‘आँधी-आवे’
- ‘चिदंबर’
- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (1896-1961):
- ‘रामकवि’
- ‘सरोज स्मिति’
- ‘नीरज की प्रेमकविताएँ’
- ‘आपदाएँ’
- महादेवी वर्मा (1907-1987):
- ‘यह मेरा देश है’
- ‘दे खुदा’
- ‘रात पश्चाताप’
- ‘निम्नलिखित नदियाँ’
- जैनेन्द्र कुमार (1905-1946):
- ‘कविताएँ’
- ‘कल्पना के भीतर’
- ‘पंचवटी’
- ‘सूरदास’
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (1908-1974):
- ‘रणक्षेत्र’
- ‘पारिजात’
- ‘उर्वशी’
- ‘सिंहासन खाली है’
- मक्खनलाल चतुर्वेदी (1889-1968):
- ‘मनुष्य’
- ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’
- ‘ज्यों की त्यों’
- ‘अहो मेरा प्रियजन’
- हरिवंश राय बच्चन (1907-2003):
- ‘मधुशाला’
- ‘आत्मा कवि’
- ‘निर्मल आकाश की तलाश में’
- ‘ईश्वर की और कवि की’
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल (1884-1941):
- ‘हम पुरुष हम बाप’
- ‘बगुला भगत’
- ‘चिदंबर की यात्रा’
- ‘दिन पक्षी’
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (1907-1950):
- ‘संगीत सरिता’
- ‘वसंत’
- ‘मन की माला’
- ‘पूरब के परिनिष्ठ’
- धर्मवीर भारती (1926-1997):
- ‘आज कविता करता हूँ’
- ‘आपकी याद रहेगी’
- ‘उत्सव’
- ‘एक खिलौना’
- अतल बिहारी वाजपेयी (1924-2018):
- ‘कैदी की कविताएँ’
- ‘आँधी से ही क्यों’
- ‘सुप्रभात’
- ‘हार–जीत’
- केदारनाथ आग्रवाल ‘नगर’ (1911-2001):
- ‘काव्यांजलि’
- ‘पर्यावरण कविता’
- ‘बागबान’
- ‘निर्मल वर्षा’
- विश्वनाथ प्रसाद सिंह (1908-2000):
- ‘आहुति’
- ‘धूली’
- ‘वीर भारत’
- ‘चाय और बिस्कुट’
- श्याम नारायण पांडेय ‘निराल’ (1921-1993):
- ‘रहीम’
- ‘कवि और काव्य’
- ‘चित्रमय विश्व’
- ‘महाकवि नीराल’
- धरमवीर भारती (1926-1997):
- ‘आज कविता करता हूँ’
- ‘आपकी याद रहेगी’
- ‘उत्सव’
- ‘एक खिलौना’
- भगवतीचरण वर्मा (1923-1981):
- ‘एक काव्यी’
- ‘भ्रमर’
- ‘जब काव्य बोलता है’
- ‘दो नीरज’
- गोपाल दास ‘नीरज’ (1925-2018):
- ‘आजकल’
- ‘आईए वह कोई देखें’
- ‘कविता के बिना’
- ‘साहित्य का बीमा’
- आत्मराम शर्मा ‘हरिषंकर परसाई’ (1922-1995):
- ‘कौन कहता है मुझे गोली मारो’
- ‘लक्ष्मीप्रसाद देवकीनंदन ने कहा था’
- ‘धन्यवाद’
- ‘सबसे खतरनाक’
- निदा फाजली (1914-2008):
- ‘मानवीय चरित्र’
- ‘मेरा सफर’
- ‘बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे’
- ‘हिन्दुस्तान कहता है’
ये थे कुछ महत्वपूर्ण आधुनिक काल के हिंदी कवियों के नाम और उनकी प्रमुख रचनाएँ। यहाँ दी गई सूची सिर्फ संक्षिप्त जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से है, और आपकी रुचि के अनुसार आप उनकी रचनाओं को और भी गहराई से अध्ययन कर सकते हैं।
आधुनिक काल का नामकरण
“आधुनिक काल” का नामकरण उस समय के साहित्यिक एवं सामाजिक परिवर्तन को दर्शाता है जब भारतीय समाज और साहित्य में विशेष प्रकार की बदलावी प्रक्रिया घटित हुई। इस काल के दौरान भारतीय समाज में अनेक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए जिनका प्रभाव साहित्यिक कार्यों पर भी पड़ा।
आधुनिक काल का आरंभ 18वीं सदी के आखिरी दशक से होता है और यह वर्तमान तक जाता है। इस काल के दौरान साहित्य में विभिन्न शैलियों, प्रायोगिकताओं, और विचारधाराओं की विविधता दिखाई देती है, जो समाज में आए बदलावों का प्रतिरूप हैं।
आधुनिक काल के दौरान साहित्य के क्षेत्र में नए प्रवृत्तियों और शैलियों का उदय हुआ, जैसे कि कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक, निबंध, आदि। साथ ही, समाज में स्त्री मुक्ति, स्वतंत्रता संग्राम, भाषा आंदोलन, आदि के प्रेरणास्त्रोत भी साहित्य के इस काल को निर्माण करने में सहायक रहे।
इस प्रकार, “आधुनिक काल” नामकरण एक सामाजिक और साहित्यिक परिवर्तन की प्रक्रिया को संक्षेपित रूप में दर्शाता है जिसने भारतीय साहित्य को नए दिशानिर्देश में ले जाया।
- रामचंद्र शुक्ल:
- रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल को “भाषावादी काल” के रूप में भी जाना जाता है।
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’:
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने आधुनिक काल को “प्रागत्यकाल” या “प्रगतिवादी काल” के रूप में भी वर्णित किया था।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल:
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल को “विचारवादी काल” के रूप में भी जाना जाता है।
- जयशंकर प्रसाद:
- जयशंकर प्रसाद ने इस काल को “युगधर्म” के रूप में भी वर्णित किया।
आधुनिक काल का विभाजन
आधुनिक काल का विभाजन विभिन्न समाजशास्त्रियों और साहित्यिकों द्वारा भिन्न तरीकों से किया गया है। यह विभाजन आमतौर पर आधुनिक काल की विभिन्न चरणों और प्रवृत्तियों को समझने के लिए किया गया है। निम्नलिखित तीन प्रमुख विभाजन हैं:
- भाषावादी काल (रामचंद्र शुक्ल): रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल को “भाषावादी काल” के रूप में भी जाना जाता है। उनके अनुसार, इस काल का आरंभ 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद होता है और इसमें विचारवाद, राष्ट्रीयता, और सामाजिक उत्थान के विचार प्रमुख थे।
- प्रगतिवादी काल (रामधारी सिंह ‘दिनकर’): रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने आधुनिक काल को “प्रगतिवादी काल” के रूप में भी वर्णित किया। उनके अनुसार, यह काल 1918 से लेकर 1937 तक का होता है और इसमें समाजशास्त्रीय और साहित्यिक परिवर्तन की दिशा में प्रगति थी।
- विचारवादी काल (केदारनाथ आग्रवाल ‘नगर’): केदारनाथ आग्रवाल ‘नगर’ ने आधुनिक काल को “विचारवादी काल” के रूप में भी जाना जाता है। उनके अनुसार, यह काल 1937 से लेकर 1955 तक का होता है और इसमें विचारशीलता, सामाजिक चेतना, और साहित्यिक उत्थान की दिशा में प्रमुख विकास था।
ये विभाजन साहित्यिक परिवर्तनों की महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाने के लिए किए गए हैं और विभिन्न समय-सीमाओं को उजागर करने में मदद करते हैं।
आधुनिक काल के भाग
इसके कुल 6 भाग है
- भारतेन्दु काल
- द्विवेदी काल
- छायावाद काल
- प्रगतिवाद
- प्रयोगवाद
- नयी कविता
आधुनिक काल की विशेषताएं
आधुनिक काल की विशेषताएँ विभिन्न क्षेत्रों में विचारशीलता, साहित्यिक प्रवृत्तियाँ, और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्टता को दर्शाती हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण आधुनिक काल की विशेषताएँ हैं:
- विविधता: आधुनिक काल में साहित्य में विविधता दिखाई देती है। विभिन्न प्रवृत्तियाँ और शैलियाँ साहित्यिक कार्यों में प्रकट होती हैं, जैसे कि कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक, आदि।
- भाषाई उत्थान: भाषावाद और भाषाई उत्थान की महत्वपूर्ण भूमिका आधुनिक काल में थी। भाषाई आंदोलनों के माध्यम से भाषा की महत्वपूर्णता को पुनर्विचार किया गया और आधुनिक हिंदी को महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँचाया गया।
- सामाजिक चेतना: आधुनिक काल में समाज में चेतना और सामाजिक उत्थान की महत्वपूर्ण भूमिका रही। साहित्यिक कामों में समाज की समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया गया और उन्हें हल करने की दिशा में विचारशीलता प्रकट की गई।
- मानवाधिकार और समाजवाद: आधुनिक काल में मानवाधिकार, समाजवाद, और सामाजिक न्याय के विचार महत्वपूर्ण रहे। साहित्यिक कार्यों में इन मुद्दों पर विचार किया गया और उन्हें उजागर करने का प्रयास किया गया।
- प्रौद्योगिकी और विज्ञान: आधुनिक काल में प्रौद्योगिकी और विज्ञान के प्रगतिशील उत्थान ने साहित्य के भीतर भी प्रभाव डाला। साहित्यिक कार्यों में तकनीकी प्रगति के प्रति विचार किए गए और विज्ञान के विकास को दर्शाने का प्रयास किया गया।
- व्यक्तिगत अनुभव: आधुनिक काल में व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं का महत्व बढ़ गया। लेखक अपने व्यक्तिगत अनुभवों, भावनाओं, और सोच को साहित्यिक कामों में प्रकट करने का प्रयास करते थे।
- सामाजिक अशांति और असमंजस: आधुनिक काल में समाज में अशांति, असमंजस, और द्वंद्वों की स्थिति को प्रकट करने का प्रयास किया गया। साहित्य में यह असमंजस और अशांति का प्रतिरूप मिलता है जिसने समाज के अध्यात्मिक और मानसिक स्वरूप को प्रकट किया।
- स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव: आधुनिक काल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव साहित्य पर भी दिखाई दिया। लेखकों ने स्वतंत्रता संग्राम के मुद्दों को उजागर करने के लिए अपने कामों को उपयोगी बनाया।
- पोस्टमोडर्निज्म की दिशा में: आधुनिक काल के आखिरी दशकों में पोस्टमोडर्निज्म की दिशा में साहित्य में परिवर्तन दिखाई देने लगा। इसमें व्यक्तिगतता, भाषा के खिलाफ़ चुनौतियाँ, और साहित्य की परिभाषा पर सवाल उठने लगे।
ये विशेषताएँ आधुनिक काल की अनूठी पहचान हैं और साहित्य में नई दिशाएँ प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
आधुनिक काल की प्रवृत्तियाँ
आधुनिक काल में विभिन्न प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं जो साहित्यिक कामों में प्रकट होती हैं और सामाजिक परिवर्तन के प्रति लेखकों की दृष्टि को प्रकट करती हैं। निम्नलिखित हैं कुछ महत्वपूर्ण प्रवृत्तियाँ:
- प्रागत्यकालिन प्रवृत्तियाँ: आधुनिक काल की शुरुआत में प्रागत्यकालिन प्रवृत्तियाँ दिखाई दी गईं, जिसमें आधुनिकता, भाषावाद, और राष्ट्रीयता के विचार प्रमुख थे। लेखकों ने नए आदर्शों की ओर प्रयास किया और उन्होंने समाज की समस्याओं के समाधान की दिशा में नये विचार प्रस्तुत किए।
- प्रगतिवादी प्रवृत्तियाँ: प्रगतिवादी प्रवृत्तियाँ आधुनिक काल के बादी दशकों में प्रमुख थीं। इसमें समाजशास्त्रीय और आर्थिक परिवर्तन की दिशा में विचारशीलता प्रमुख थी।
- समाजवादी प्रवृत्तियाँ: समाजवादी प्रवृत्तियाँ साहित्य में आधुनिकता और सामाजिक न्याय के विचार को प्रमुख बनाती हैं। लेखकों ने गरीबी, उदारता, और सामाजिक असमानता के मुद्दों पर विचार किए और उन्हें उजागर करने के लिए अपने कामों का उपयोग किया।
- नवजवान संगठनों की प्रवृत्तियाँ: आधुनिक काल में युवा संगठनों का उदय हुआ और उन्होंने नए विचारों को प्रस्तुत किया। युवा संगठनों ने समाज में सुधार की मांग की और उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के प्रति लेखकों की दृष्टि को प्रेरित किया।
- स्त्री संबंधित प्रवृत्तियाँ: आधुनिक काल में स्त्री संबंधित मुद्दों पर लेखकों का ध्यान ज्यादा गया। इस प्रकार की प्रवृत्तियाँ स्त्री के अधिकारों को साहित्य में प्रकट करने का प्रयास किया और समाज में स्त्री की स्थिति पर विचार किए।
- पोस्टमोडर्निज्म की प्रवृत्तियाँ: आधुनिक काल की आखिरी दशकों में पोस्टमोडर्निज्म की प्रवृत्तियाँ साहित्य में प्रकट होने लगीं। इसमें भाषा की खिलाफ़ चुनौतियाँ, साहित्यिक परंपराओं का सवाल, और अवामुक्ति के प्रति आत्मविश्वास की प्रवृत्ति होती है।
ये प्रवृत्तियाँ साहित्यिक कामों में नए दिशानिर्देश और विचारों की प्रस्तुति का तरीका प्रदान करती हैं और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में लेखकों की दृष्टि को प्रकट करती हैं।
आधुनिक काल की बुक
Drishti IAS UGC Hindi Sahitya [NTA/NET/JRF] | Click Here |
Hindi Bhasha Evam Sahitya Ka Vast. Itihas | Saraswati Pandey | Click Here |
Hindi Sahitya Ka Itihas In Hindi | Click Here |
Hindi Bhasha avam Sahitya Ka Vastunishth Etihas | Click Here |
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FAQ
आधुनिक काल का आरंभ माना जाता है
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आधुनिक काल का प्रारम्भ संवत 1900 (सन् 1843) से माना है। कुछ इतिहासकारों ने आधुनिक जीवन-बोध के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जन्मवर्ष सन् 1850 से आधुनिक काल का प्रारम्भ माना जाता है
आधुनिक काल किसे कहते हैं
आधुनिक काल को हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है। जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, कहानी,समालोचना, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ।
आधुनिक काल को कितने भागों में बांटा गया है
6 भागों मे
आधुनिक काल के प्रमुख नाटककार माने जाते हैं
नाटककार प्रसाद, सेठ गोविंद दास, गोविंद वल्लभ पंत, लक्ष्मीनारायण मिश्र, उदयशंकर भट्ट, रामकुमार वर्मा आदि हैं।
आधुनिक काल की सबसे लोकप्रिय विधा है
लोकप्रिय विधा ‘गद्य‘ को माना गया है।